राधा-कृष्ण का वह आख़िरी वादा: जब कृष्ण ने राधा से आँसू माँग लिए…

 



जब कृष्ण वृंदावन छोड़ने लगे और मथुरा की ओर प्रस्थान करने को थे, तब उन्होंने यमुना घाट पर अंतिम विदाई लेने के लिए राधा का रुख किया।

राधा, जो पहले से ही विचलित थी, यमुना की लहरों में अपने पाँव डुबोए खड़ी थी, कृष्ण के आने का इंतज़ार कर रही थी।
कृष्ण के मथुरा जाने की बात सुनकर राधा का मन पहले से ही बेचैन था, उदास था।

कृष्ण आए, और राधा के पास घंटों बैठे। उन्हें मनाने की कोशिश करते रहे, ढेरों बहाने गिनाए कि कैसे वे वापस वृंदावन लौटेंगे…

लेकिन फिर आई वो घड़ी — अंतिम विदाई की घड़ी।
कैसे कहें अलविदा? क्या कहें?
शब्द मौन हो गए थे, दृष्टियाँ धुंधली।

इन्हीं उलझनों के बीच राधा ने कृष्ण से कई वादे कराए — और कृष्ण ने भी राधा से एक वादा माँगा।

क्या जानते हैं आप, उस दिन कृष्ण ने राधा से कौन-सा वादा माँगा था?

कृष्ण ने कहा —
"राधे, मैं चाहता हूँ कि तुम मुझसे एक वादा करो — जब मैं मथुरा चला जाऊँ, तब मेरे पीछे एक भी आँसू मत बहाना…
तुम्हारे आँसू मेरी राह से मुझे भटका सकते हैं।"

हे कृष्ण! आपने ये कैसा वादा माँग लिया?
आप जीवन माँग लेते, राधा वह भी दे देती…
लेकिन आपने तो राधा से उसका रोने का अधिकार भी छीन लिया…

वादा हो गया।
फिर राधा-कृष्ण बस मौन हो गए — उदास, विछोभ में डूबे हुए।

लेकिन राधा ने वह वादा पूरी तरह निभाया…
आँखें पत्थर बन गईं, लेकिन एक भी आँसू बाहर न आने दिया।
कृष्ण जब मथुरा की ओर बढ़े, तो अपने पीछे राधा से रोने का हक़ भी छीन ले गए।

लेकिन जो नहीं ले जा सके — वो था राधा का अनंत, असीम, अकथ प्रेम।
वो प्रेम जो शब्दों से परे था, जिसकी गहराई को स्वयं कृष्ण भी न माप सके।

राधा का वह प्रेम आज भी कालजयी है —
ना आँसुओं में बहा, ना विरह में घटा…
वो प्रेम बस बन गया एक प्रतीक — समर्पण का, त्याग का, और सच्चे प्रेम का।

जय श्री राधे।
जय मेरे ठाकुर श्री श्याम की।

टिप्पणियाँ